सनातन न्यूज़
- 18-Oct-2024
- By : Reporter
हिंदुओ ने अपने त्योहार को नाच गाने का त्योहार बना रखा है। किसी का भी ध्यान गुरुकुल, गौशाला, वेद शाला में नहीं जा रहा:· नीलकंठ महाराज
धर्म संसद आयोजक एवं श्री नीलकंठ सेवा संस्था संस्थापक पंडित नीलकंठ त्रिपाठी महाराज ने हिंदुओ को संबोधित करते हुए कहा की गुरुकुलों में, गौ शालाओं में, वेद शालाओ में, पाठशालाओं, यज्ञ शालाओं में सनातन धर्मी का ध्यान जा ही नही रहा है केवल मठ मंदिर बनाने में हिंदू लगे पड़े है। आज दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बना लिया। दुनिया का सबसे बड़ा सोने का चांदी का मंदिर बना लिया इससे धर्म नही बचेगा। मंदिरों के बनाने से धर्म नही बचेगा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कह रहे लेकिन हमें सुनाई नही दे रहा। मैं अगर मंदिर में कैद रहा तो मैं फिर से उजाड़ा जाऊंगा मुझे मंदिर के साथ विद्यालय में पढ़ाया जाए और आचरण में लाया जाए मैं तभी काम आऊंगा। आचरण में जब तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की शिक्षा नही लायी जाएगी। तब तक हम कुछ नहींकर सकते। आप स्वयं सोच कर देखिए जब 5 गांव में एक मंदिर हुआ करता था तब सभी हिंदू पांच गांव के उस मंदिर में एक दूसरे से मिलते थे संगठित होते थे और आज एक ही कॉलोनी में 5 मंदिर है। अब ये हो गया है एक ही कॉलोनी में पांच मंदिर तो पांच अलग अलग ग्रुप में बट गए है हिंदू की ये मेरा मंदिर ये तेरा मंदिर, अब बताइए यदि मंदिरों की संख्या के बढ़ने से धर्म बढ़ने और घटने के तात्पर्य होता है तो इन वर्षों में जब मंदिरों की संख्या बढ़ती जा रही है तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है, केदारनाथ जाने की संख्या बढ़ती जा रही है , गंगा स्नान करने वालो की संख्या बढ़ती जा रही है, पूजा करने की संख्या बढ़ती जा रही है वृंदावन जाने वालों की संख्या बढ़ती जा
“सभी विद्यालयों में भगवान राम के चरित्र सनातन धर्म की शिक्षा मिलनी चाहिए।.”
रही है। वो सब फोटो खिंचवाने और रील्स बनाने वाली भक्ति है जो बस सोशल मीडिया पर सभी को दिख जाए की हम अपने धर्म के लिए कितने कट्टर है। मंदिर का वास्तविक जो उद्देश्य था कि योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है हम वह जाकर श्रीमद्भागवत गीता पढ़े भगवान राम का मंदिर है तो हम वहा जाकर। श्री वाल्मीकि रामायण पढ़े। ये उद्देश्य था ये उद्देश्य नही था कि नवरात्रि आई तो नाचेंगे गाएंगे फिल्मी गीतों पर मौज मस्ती करेंगे। हम सनातनी अपने त्योहार को नाचने गाने का पर्व बना रखा है आप सोच करके देखिए गणेश पर्व आएगा तो हिन्दू केवल नाचेगा, नवरात्रि आएगी तो हिन्दू केवल नाचेगा होली आएगी तो हिन्दू केवल नाचेगा। कभी ऐसा हुआ हो कि नवरात्रि आये तो हम नवदुर्गा के श्रेष्ठ चरित्र पढ़ा हो, इतिहास को पढ़ा हो अपनी बेटियों को पढ़ाया हो, नवरात्रि में हमने बेटियों के आत्म रक्षा के लिए शिविर लगाया हो नही केवल नाचो नाचो। बालगंगाधर तिलक ने बड़े श्रेष्ठ उद्देश्य के साथ गणेश चतुर्थी को प्रारंभ किया कि हम गणेश चतुर्थी के बहाने से इन अंग्रेजो से लड़ने के लिए एकत्रित होंगे संगठित होंगे। लेकिन हमने आज उस गणेश चतुर्थी के मूल उद्देश्य को छोड़ दिया है क्योकि आज भी हम कोई आज़ाद नही है ये विदेशी ताकतों की आज भी हम लोगो पर शिकंजे है लेकिन हम उस गणेश चतुर्थी को माध्यम बनाकर एकत्रित करण का काम छोड़ कर केवल नाच रहे है वो भी फुहड़ गानों पर हिन्दुओ को कोई फर्क नही पड़ता कि मंच में गणेश जी विराजमान है या नवरात्रि में मां दुर्गा जी बैठे है उनको केवल अपने मनोरंजन से मतलब है छोटे कटे फटे कपड़े पहनकर नाचने से मतलब है